लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने 6 साल पुराने चुनावी प्रतिबंध को अवैध घोषित कर दिया. साथ ही इसके जरिए चंदा लेने पर भी रोक लगा दी गई. अदालत ने फैसला सुनाया कि बांड स्टॉक असंवैधानिक था। यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.
5 जजों जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव साक्षान, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला लिया. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘राजनीतिक दल राजनीतिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण इकाइयां हैं.’ राजनीतिक फंडिंग के बारे में जानकारी वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा गरीबों को वोट देने का सही विकल्प मिलता है। मतदाताओं को फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे उन्हें मतदान करते समय सही विकल्प चुनने में मदद मिलती है।
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक से कहा बांड जारी करना बंद करें
सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को चुनावी बांड जारी करना बंद करने का निर्देश दिया। साथ ही कहा कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को दे.
फैसले की 6 बड़ी बातें…
- भारतीय स्टेट बैंक को राजनीतिक इंजीनियरों के बीच विविधता लानी चाहिए, 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा आता रहा है.
- भारतीय स्टेट बैंक द्वारा राजनीतिक दल की ओर से भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बांड का विवरण प्रदान करें, नकदीकरण की तारीख का विवरण भी दें।
- भारतीय स्टेट बैंक को 6 मार्च 2024 तक सारी जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी और चुनाव आयोग को 13 मार्च तक इसे अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करना होगा.
- काले धन पर नकेल कसने के लिए राजनीतिक चंदे की गोपनीयता के पीछे का तर्क मान्य नहीं है। यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.
- कंपनी अधिनियम में संशोधन एक मनमाना और असंवैधानिक कदम है। इसके अलावा राजनीतिक संगठनों के लिए संगठन की ओर से सीमित फंडिंग का रास्ता भी खुला है.
- निजता के मौलिक अधिकार में नागरिकों की राजनीतिक संबद्धता को गोपनीय रखना भी शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2 नवंबर को अपना फैसला सुनाया
सीजेआई दिवाई चंद्रचूड़ की पांच जजों की लोधी बेंच ने 2 नवंबर, 2023 को तीन दिन की सुनवाई के बाद इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस संबंध में डाक टिकट रखे गए थे।
इन समूहों में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सीपीएम शामिल हैं। केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. आरोपियों की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बहस की थी.
सुनवाई साल 2023 में हुई थी
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कॉच मामले की सुनवाई 1 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में हुई. केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि राजनीतिक चंदे में भागीदारी चुनावी बॉन्ड के जरिए होती है. पहले दान नकद दिया जाता था, लेकिन अब पैसा दान कोष में जमा कर दिया गया है.
चंदा नहीं चाहती थीं कि उनके दूसरी बार चंदा लेने की बात पार्टी को पता चले. इस कारण उनके जैसी कोई दूसरी पार्टी नहीं थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर ऐसा है तो अस्थायी पार्टी नामांकन के लिए चंदे की जानकारी क्यों उपलब्ध है? आपको लिंग संबंधी जानकारी क्यों नहीं मिल पाती?
केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए, जबकि जनरल की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और विजय हंसारिया पेश हुए.
31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में पहले दिन की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए, क्रिस्टोफर की ओर से दिग्गज खिलाड़ी कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और विजय हंसारिया ने पैरवी की थी।
प्रशांत भूषण ने कहा था कि ये बांड सिर्फ रिश्वत हैं, जो सरकारी फैसलों को प्रभावित करते हैं। नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि किस पार्टी को कहां से पैसा मिला।
जाने क्या है पूरा मामला
इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे नामांकन बांड से संबंधित सभी जानकारी 30 मई, 2019 तक चुनाव आयोग को जीवंत रूप में प्रदान करें। कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई.
बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दायर किया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि कैसे चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने नजरअंदाज कर दिया.
इस पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि मामले की सुनवाई जनवरी 2020 में होगी. चुनाव आयोग को अपना जवाब दाखिल करने के लिए सुनवाई फिर स्थगित कर दी गई. इसके बाद से इस मामले में कोई सुनवाई नहीं हुई है.
इलेक्टोरल बांड क्या है?
2017 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पेश की थी. केंद्र सरकार ने 29 जनवरी 2018 को इसे अधिसूचित किया। यह एक तरह का वचन पत्र है। जिसे बैंक नोट भी कहा जाता है. इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है.
अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं तो यह आपको स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा खरीदी गई मिल में मिल जाएगा. जो लोग इससे चूक गए हैं वे इस बांड को अपनी पसंद की पार्टी को दान कर सकते हैं। केवल वही पक्ष पात्र होना चाहिए।
हमें कैसे पता चलेगा कि हम जिस पार्टी को चंदा दे रहे हैं वह योग्य है या नहीं?
एक बॉन्ड धारक 1,000 रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक का बॉन्ड खरीद सकता है। लिंक्ड व्यक्ति को अपनी पूरी केवाईसी डिटेल्स में बैंक को शामिल करना होगा. जिस पार्टी को रिपेयरमैन यह बांड दान करना चाहता है उसे पिछले लोकसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिलना चाहिए। दानकर्ता द्वारा बांड दान करने के 15 दिनों के भीतर पार्टी को चुनाव आयोग के रीरी बैंक खाते से नकदी निकालनी होगी।
इस पर विवाद क्यों…
2017 में, अरुणाचल प्रदेश ने इसे पेश किया और दावा किया कि राजनीतिक दलों को फंडिंग और चुनावी प्रणाली में जगह मिलेगी। काले धन पर प्रहार. वहीं, इसका विरोध करने वालों का कहना है कि चुनावी बांड धारक की स्पष्ट पहचान नहीं हो पाती है, इसलिए इस चुनाव में काले धन का इस्तेमाल किया जा सकता है।
कुछ लोगों का आरोप है कि यह स्कॉच मुख्यतः घरों को ध्यान में रखकर बनाया गया था। इससे इन घरानों को बिना पहचाने पूर्वी तट पर चंदा का राजनीतिक चित्रण करने की अनुमति मिलती है।
चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी…
- इसे कोई भी भारतीय खरीद सकता है.
- बैंक को केवाईसी विवरण प्रदान करके 1,000 रुपये से 1 करोड़ रुपये तक के बांड खरीदे जा सकते हैं।
- इलेक्टोरल बांड खरीदने वालों की पहचान गुप्त रहती है।
- इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में छूट भी मिलती है.
- ये बांड जारी होने के बाद 15 दिनों तक वैध रहते हैं।